अन्तर्जाल पर स्थित ब्लॉगों पर लिखे गये यात्रा-वृत्त को हम आज के सन्दर्भ में क़तई उपेक्षित नहीं कर सकते। ब्लॉग लेखन की प्रवृत्ति आज अति लोकप्रिय है। तथा उस पर स्थित यात्रा-वृत्त भी कम महत्त्व के नहीं हैं। प्रस्तुत है ब्लॉग पर लिखे गये कुछ महत्त्वपूर्ण यात्रा-वृत्तों और उनके लेखकों का परिचय और समीक्षा-
समीरलाल ‘समीर’ : परिचय और समीक्षण
ब्लॉग जगत में समीरलाल ‘समीर’1 को भला कौन नहीं जानता जो ब्लॉगों की दुनिया से ज़रा भी ता’ल्लुक़ रखता है। आपका जन्म 29 जुलाई, 1963 को रतलाम, मध्य प्रदेश में हुआ था। विश्वविद्यालय तक की शिक्षा जबलपुर, मध्य प्रदेश से प्राप्त कर आप चार साल बम्बई में रहे और चार्टर्ड एकाउन्टेंट बनकर पुनः जबलपुर में 1999 तक प्रैक्टिस की। 1999 में आप कनाडा आ गये और अब वहीं टोरंटो नामक शहर में निवास करते हैं। आप कनाडा के सबसे बड़े बैंक के लिए तकनीकी सलाहकार हैं एवं आपके नियमित तकनीक-आलेख प्रकाशित होते रहे हैं।
पेशे के अतिरिक्त साहित्य के पठन और लेखन में आपकी गहरी पैठ है। सन् 2004 से आप नियमित लिख रहे हैं। आप कविता, ग़ज़ल, व्यंग्य, कहानी, लघुकथा, यात्रा-वृत्त आदि अनेक विधाओं में दख़ल रखते हैं। समीरलाल कवि-सम्मेलनों के मंच का एक जाना-पहचाना नाम है। भारत के अलावा कनाडा में टोरंटो, मांट्रियल और अमेरिका में बफेलो, वाशिंगटन और ऑस्टीन शहरों में मंच से कई बार अपनी प्रस्तुति दे चुके हैं।
आप कनाडा से प्रकाशित त्रयमासिक पत्रिका ‘हिन्दी चेतना’ के नियमित व्यंग्यकार हैं एवं गर्भनाल, अनुभूति, अभिव्यक्ति, हिन्दी नेस्ट, विभिन्न समाचार-पत्र और पत्रिकाओं में आपकी लेखन-सम्पदा निरन्तर प्रकाशित हो रही है।
आपका ब्लॉग ‘उड़नतश्तरी’2 हिन्दी ब्लॉग जगत में सर्वाधिक लोकप्रिय नाम है एवं आपके प्रशंसकों की संख्या का अनुमान मात्र उनके ब्लॉग पर आई टिप्पणियों को देखकर लगाया जा सकता है। आपका लोकप्रिय काव्य-संग्रह ‘बिखरे मोती’ वर्ष 2009 में शिवना प्रकाशन, सिहोर के द्वारा प्रकाशित किया गया एवं शिवना प्रकाशन द्वारा ही वर्ष 2011 में एक उपन्यासिका ‘देख लूँ तो चलूँ’ प्रकाशित की गई। एक कथा संग्रह ‘द साइड मिरर’ (हिन्दी कथाओं का संग्रह) प्रकाशन में है और शीघ्र ही प्रकाशित होने वाला है।
आपका ब्लॉग ‘उड़नतश्तरी’2 हिन्दी ब्लॉग जगत में सर्वाधिक लोकप्रिय नाम है एवं आपके प्रशंसकों की संख्या का अनुमान मात्र उनके ब्लॉग पर आई टिप्पणियों को देखकर लगाया जा सकता है। आपका लोकप्रिय काव्य-संग्रह ‘बिखरे मोती’ वर्ष 2009 में शिवना प्रकाशन, सिहोर के द्वारा प्रकाशित किया गया एवं शिवना प्रकाशन द्वारा ही वर्ष 2011 में एक उपन्यासिका ‘देख लूँ तो चलूँ’ प्रकाशित की गई। एक कथा संग्रह ‘द साइड मिरर’ (हिन्दी कथाओं का संग्रह) प्रकाशन में है और शीघ्र ही प्रकाशित होने वाला है।
आपको सन् 2006 में तरकश सम्मान, सर्वश्रेष्ठ उदीयमान ब्लॉगर, इण्डी ब्लॉगर सम्मान, विश्व का सर्वाधिक लोकप्रिय ब्लॉग, वाशिंगटन हिन्दी समिति द्वारा साहित्य गौरव सम्मान सन् 2009, शिवना सारस्वत सम्मान 2009, एवं अन्य अनेक सम्मान से नवाज़ा जा चुका है।
‘उड़न तश्तरी’3 ब्लॉग पर कवि एवं लेखक समीरलाल ‘समीर’ के यात्रा-वृत्त- ‘बड़ी दूर से आए हैं ब्लॉगर मिलने’4, ‘दूरियां जो नापी गईं घण्टों में पिछले दिनों’, ‘एडिनबर्ग नहीं एडिनबरा, स्कॉटलैंड: एक ऐतिहासिक नगरी की सैर’5 प्रमुख हैं।
‘बड़ी दूर से आए हैं...ब्लॉगर मिलने!!!’ यात्रा-वृत्त जुलाई 22, 2011 को प्रकाशित किया गया। इसमें लेखक ने लन्दन यात्रा का वर्णन किया है जहां पर एक मित्र ब्लॉगर लेखिका शिखा वार्ष्णेय6 के घर पर कई ब्लॉगर मित्रों का जमावड़ा होना था। यह एक अन्तर राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन की योजना थी। समीरलाल जी का यात्रा-वर्णन तथा प्राकृतिक सौन्दर्य का अंकन बड़ा ही रोचक होता है। एक जगह पर वे लिखते हैं- ‘‘रास्ता आरामदायक, दर्शनीय और ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ फ़िल्म के सरसों के खेत की याद दिलाता मज़ेदार था। 7.50 को बस चली और बादलों ने सूरज को आ घेरा। बरसे नहीं, बस घेर कर बैठ गये। शायद सूरज से पूर्व में समझौता करके आए थे कि बस कुछ देर घेरकर बैठे रहेंगे और फिर निकल जाएंगे। बरसे बरसाएंगे नहीं। सिर्फ़ जनता को बरसात का मनोरम सपना दिखाएंगे।’’ इसी यात्रा-वृत्त में बादलों पर ही उनकी रोचक व्यंजना दर्शनीय है- ‘‘खिड़की के बाहर नज़र पड़ी तो देखा बादल सूरज द्वारा खदेड़े जा रहे हैं। लगा कि पूर्व समझौते के अनुसार न हटकर जनता यानी मेरी पसन्द देखते हुए अनशन पर डटे रहने से ख़फ़ा सूरज ने लाठीचार्ज करवा दिया हो। कोई बादल कहीं भागा, कोई कहीं कूदा, कोई कहीं काले से सफ़ेद बादल का भेष बदल कर भागा। बादल भी न! समझते नहीं हैं- उनका क्या है आज हैं कल नहीं होंगे। सूरज को तो हमेशा रहना है। रामलीला मैदान और बाबा रामदेव की याद हो आयी बिल्कुल से।''
‘एडिनबर्ग नहीं एडिनबरा, स्कॉटलैण्ड : एक ऐतिहासिक नगरी की सैर’ में एडिनबर्ग और स्कॉटलैण्ड के प्राकृतिक मनोरम दृश्यों तथा ऐतिहासिक महत्त्व के स्थलों का सुन्दर चित्रण किया गया है। आपकी भाषा-शैली रोचक और प्रवाहपूर्ण है। पूरे लेख से पाठक आद्यन्त निरन्तर बंधा रहता है। कहीं भी बोरियत का आभास नहीं होता।
शिखा वार्ष्णेय के यात्रा-वृत्त: परिचय और समीक्षण
हिन्दी ब्लॉग-दुनिया में शिखा वार्ष्णेय एक बुलन्द नाम है। शिखा जी नई दिल्ली में पैदा हुईं। मॉस्को स्टेट युनिवर्सिटी से टी.वी. जर्नलिज़्म में परास्नातक (विद् ऑनर) करने के बाद कुछ समय भारत में एक टी.वी. चैनल में बतौर न्यूज़ प्रोड्यूसर रहीं। मई 1993-94 तक रेडियो मॉस्को में ऐज़ ए ब्रॉडकास्टर काम किया। वर्त्तमान में आप लन्दन, युनाइटेड किंगडम में स्वतन्त्र पत्रकारिता और लेखन में सक्रिय हैं। समाज और मानव-मनोविज्ञान पर आपकी किताबें प्रकाशित होती रहीं हैं और रूस के प्रवास पर एक पुस्तक /यात्रा-वृत्तान्त प्रकाशनार्थ है। आपको यात्रा-वृत्तान्त के लिए साहित्य निकेतन परिकल्पना सम्मान, 2010 तथा संवाद सम्मान द्वारा संस्मरण के लिए वर्ष की सर्वश्रेष्ठ लेखिका का सम्मान प्राप्त हुआ।
आपने कई देशों की यात्राएं कीं और गन्तव्य स्थलों के सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक, आर्थिक, ऐतिहासिक और कलात्मक पक्षों को बड़े ही रोचक ढंग से अपने यात्रा-वृत्तों में प्रस्तुत किया। आपके यात्रा-वृत्तों में मुख्यरूप से ‘एक दिन एक गांव में’7, ‘टॉलस्टॉय गोर्की और यह नन्हा दिमाग़’8, ‘कुछ मस्ती कुछ तफ़रीह’9, ‘वो कौन थी?’10, ‘दो दिन स्कॉट्स और बैग पॉइप’11, ‘वेनिस की एक शाम’12, ‘ये कहाँ आ गये हम: मेरी स्विस यात्रा’13 और ‘गुम्बद में अनोखी दुनिया: एडेन प्रोजॅक्ट’14, 'इतिहास की धरोहर रोम' आदि का नाम लिया जा सकता है। ये सभी यात्रा-वृत्त इनके मशहूर ब्लॉग ‘स्पंदन’15 में समय-समय पर प्रकाशित हुए हैं।
लन्दन से क़रीब 220 मील दूर कार्नवाल स्थित एक नक़ली रेन फॉरेस्ट ‘एडेन प्रोजेक्ट’ के बारे में शिखा जी लिखती हैं- ‘‘प्रवेश होता है मुख्य परिसर में जहां बने हैं दो विशाल प्राकृतिक वियोम (गुम्बद) और जिसके अन्दर है पूरी दुनिया। रसोई में प्रयोग होने वाली क्ल्लिंग फॉइल यानी एक तरह की प्लास्टिक की शीट और स्टील की सलाख़ों से बने हैं जिनमें से एक ट्रॉपिकल और दूसरा मेडिटेरेनियन पर्यावरण पर आधारित है। जहां दुनिया के हर हिस्से की प्रजाति के पौधों को लगा कर संरक्षित किया गया है।’’ इन गुम्बदों के बारे में वे लिखती हैं- ‘‘सबसे पहले हमने प्रवेश किया ट्रॉपिकल वियोम में जो 309 एकड़ जगह में बना हुआ है, जो 55 मी0 ऊँचा, 100 मी0 चौड़ा, 200 मी0 लम्बा है और जिसे उष्णकटिबन्धीय तापमान और नमी के स्तर पर रखा है। वहां बाहर हमें ताक़ीद कर दिया गया था कि अपने जैकेट उतार कर जाइए अन्दर 90 डिग्री फॉरेनहाइट तापमान है, अब कुछ लोग ज़्यादा ही अक्लमन्द होते हैं सोचा ऐसे ही बढ़ा-चढ़ा कर बोला जा रहा है। एक ही जगह पर ठंड और उस गुम्बद में घुसते ही 90 डिग्री वह भी बिना किसी हीटिंग सिस्टम के कैसे हो सकता है...परन्तु गुम्बद के अन्दर प्रवेश करते ही उन्हें अपनी ग़ल्ती का एहसास हो गया...बच्चे भारत में होने के एहसास की बातें करने लगे थे, उस गुम्बदनुमा जंगल में एशिया और ट्रापिकल देशों में होने वाले सभी सब्ज़ी और फलों के पेड़ पौधे थे जो वाक़ई एशिया के किसी शहर में होने का एहसास करा रहे थे। आम, केले, पपीते, गन्ने के पेड़, नीचे धनिए, करी पत्ते आदि के पौधे, ज़मीन में लगा अदरक, अजीब सा नॉस्टैल्जिया फैला रहे थे। एडेन प्रोजेक्ट के बारे में शिखा जी लिखती हैं कि- ‘‘इस ग्लोबल वार्मिंग के समय में एक बंजर ज़मीन पर बनाया गया ये ग्रीन हाउस आशा और सजगता का एक प्रमाण सा है। जो बेहद रोचक अन्दाज़ में अपने पर्यावरण की सुरक्षा के लिए जागरूकता फैलाने का कार्य बहुत कुशलता और सफलता से कर रहा है...और जहां से बाहर निकलते ही हर बच्चे-बड़े के मन में एक ही बात होती है कि ऐसा ही एक जंगल हम भी अपने घर के पीछे बनवाएंगे, वहां अपनी मनपसन्द पौधे उगाएंगे और अपनी प्यारी धरती को जो हमें इतना कुछ देती है...हम अपने हिस्से का योगदान अवश्य देंगे।
‘वेनिस की एक शाम’ में शिखा जी लिखती हैं- ‘‘मुझे जो वेनिस की दो चीज़ें बहुत पसन्द आईं वो हैं एक तो शहर की बनावट...लम्बी-लम्बी पानी की कनालें, उन पर चलती हुई मोटरबोट, शहर की छोटी-छोटी पानी की गलियों से जाते हुए गंडोले... किसी काल्पनिक लोक में होने का एहसास करा देते हैं... एक सुकून का शहर जहां की हवाओं में प्यार है, फ़िज़ाओं में रोमांस है... उस पर गंडोला की दिलकश यात्रा।’’ इस यात्रा वृत्तान्त में वेनिस के नाव वाले के बारे में लिखती हैं कि- ‘‘पूरे ट्रिप के दौरान उसने हमें बड़े-बड़े लोगों के घर दिखाए जैसे लिओनार्डो डी विंसी का घर... एक बात तो वहां पर जगह-जगह पर अचम्भित करती है वो ये कि आपके घर की खिड़की हो या दरवाज़ा पानी में ही खुलता है...घर से निकले तो नीचे पानी... आपके स्कूटर या कार की जगह खड़ी नाव... फिर बैठिये और चल पड़िए... रेस्टोरेंट जाना हो या राशन की दूकान उसी से जाना होगा... हां रेस्टोरेंट से याद आया... दूसरी चीज़ जो वहां हमें पसन्द आयी वो थी वनेशियन खाना... उफ़्!... वहां जाकर हम मांसाहारी से शाकाहारी बन गये थे। पिज़्ज़ा और पास्ता की इतनी वेराइटी मैंने और दुनिया में कहीं नहीं देखी।’’ अन्त में वे लिखती हैं- ‘‘पानी में तैरता वो शहर चांदनी और नावों की चलती रोशनी में कैसा लगता है इसका बखान तो मैं शब्दों में कर ही नहीं पाऊँगी... हां इतना ज़रूर कह सकती हूँ कि यह शहर की ख़ूबसूरती किसी भी कल्पना से परे है... फिर भी मैं कुछ पंक्तियों में उसे समेटने की कोशिश करती हूँ-
पानी ही पानी वहां तक
नज़रें जाती है जहां तक,
प्रीत भरी हवा में देखो
रूह हो जाती है मस्त जहां पर
जल में बहता एक गांव सा
सुन्दर नावों के पांव सा
तन मन जहां प्रफुल्लित हो
कैसे भूलें वो दिन रात
वेनिस की वो सुरमई शाम।’’
‘एक दिन गांव में’ लन्दन से क़रीब दो घण्टे की दूरी पर ऑक्सफ़ोर्ड से 35 माइल की दूरी पर एक इलाक़ा ‘कोट्स ओल्ड’ में ढेर सारे ऐतिहासिक गांव हैं इन्हीं में एक ‘ब्राटर ऑन वाटर’ गांव के बारे में शिखा जी लिखती हैं- ‘‘26 डिग्री तापमान और कार की आधी खुली छत से जाती ठंडी हवा उस पर सड़कों के किनारे जहां तक नज़र जाय वहां तक फैले घास के मैदान। मुझे एक बात जो हमेशा अचम्भित करती है कि बड़े-बड़े घास के मैदान मेंटेन कैसे करते हैं? एकदम सलीक़े से कटी घास और क़रीने से लगा वन वृक्ष... हमें जो सबसे अच्छा लगा वो था वहां का खुला-खुला, शान्त, पुरसुकून वातावरण, शहरों के खोखले मकानों की जगह ख़ूबसूरत पुराने पत्थर के बने घर और सबसे अहम बात बिना झंझट के फ़्री पार्किंग। वर्ना यहां तो कहीं भी जावो तो आधी जान पार्किंग को लेकर लटकी रहती है कि न जाने कहां मिलेगी और कितना लूटा जाएगा। एक बार तो अपने घर के आगे रोड पर भी कार पार्क करने का फाइन दे चुके हैं हम। कई बार तो लगता है कि यह देश इन्हीं जुर्मानों पर चल रहा है शायद।’’
‘ये कहां आ गये हम’...मेरी स्विस यात्रा’ में स्विट्ज़रलैंड के बारे में लिखती हैं कि- ‘‘हालांकि कहने को ऐसा कुछ भी नहीं है स्विस शहरों में कि उनकी व्याख्या की जाय...पर कुछ तो है...इतना ख़ूबसूरत कि फ़िज़ाओं में जैसे फूल खिल जाय। हर हवा के झोंके के साथ जैसे महक दिल-दिमाग़ में छा जाय। इतनी स्वच्छ और इतनी पवित्र सी प्रकृति की हाथ लगाते हुए डर लगे कि मैली न हो जाय...बरबस ही ये गीत गुन गुना उठते हैं कि- ‘ये कहां आ गये हम’।’’
‘दो दिन स्कॉट और बैगपाइप’ यात्रा-वृत्तान्त में स्कॉटलैण्ड के पहनावे के बारे में लेखिका लिखती है कि- ‘‘स्कॉटलैण्ड में सबसे ज़्यादा आकर्षित करता है वहां के लोगों का पहनावा- एक बहुत ही मुलायम और ऊनी चेक के कपड़े को कई बार लपेट कर बनाई हुई स्कर्ट उस पर क़मीज़ और काली जैकेट, एक लटकने वाला पर्स और नीचे ऊनी मोज़े और बड़े बूट...ये पुरुष और महिलाओं का लगभग एक सा पहनावा है और एडिनबरा की सड़कों पर पुरुष इस परिधान में बैगपाइप पर मधुर ध्वनि बजाते जगह-जगह दिख जाते हैं और इस धुन में स्कॉटलैण्ड के पाँच हज़ार वर्षों के स्वर्णिम इतिहास की सुगन्ध से वातावरण महक उठता है। और फ़िज़ाएं कह उठती हैं आगन्तुकों से-
आग फिर से इन वादियों में,
करने क़ुदरत से गलबहियां,
डाल झीलों के हाथों में हाथ,
रेत पर चलना पइयां पइयां।’’
इस प्रकार शिखा जी के यात्रा-वृत्त सम्बन्धित स्थानों की न केवल जानकारी उपलब्ध कराते हैं बल्कि पाठकों का भरपूर मनोरंजन करने में भी सक्षम हैं। उनमें वे सब तत्व उपलब्ध हैं जिनके द्वारा पाठक शिखा जी के साथ उस स्थान की सैर का आनन्द विधिवत् ले सकता है।
नीरज जाट: परिचय और समीक्षण
युवा लेखक नीरज जाट ब्लॉग संसार में एक ऐसा नाम है जिनके बारे में यही कहना उपयुक्त होगा कि ये जनाब एक जगह बैठ ही नहीं सकते, इनके पैरों में शनिदेव का वास है। इनका ब्लॉग ‘मुसाफ़िर हूँ यारों’16 को देखकर सहज ही अन्दाज़ा लगाया जा सकता है कि जिस गति से इनके यात्रा-वृत्तान्त प्रकाशित होते हैं तो ये महाशय कितना चलते होंगे, शायद अहर्निश।
आप मूलतः मेरठ के पास दबथुआ गांव के रहने वाले हैं। आपका जन्म 24 जुलाई 1988 ई. को हुआ। प्रारम्भिक शिक्षा गांव में ही हुई। गांव का माहौल ख़राब होने के कारण बाक़ी शिक्षा के लिए शहर जाना पड़ा। 2007 में डिप्लोमा इन पॉलिटेक्निक करने के बाद दिल्ली मेट्रो में जूनियर इंजीनियर हो गये। कोई बहुत काम नहीं और वह भी रेल की नौकरी सो जो घुमक्कड़ी शुरू हुई उसकी रफ़्तार दिल्ली मेट्रो से भी तेज़ है।
इनके कितने यात्रा-वृत्तों का नाम गिनाया जाय? समझ में नहीं आता। फिर भी बतौर बानगी कुछ प्रमुख यात्रा- वृत्तों के नाम इस प्रकार हैं-
नीरज जी की भाषा वैसे तो विवरणात्मक ही है किन्तु मज़ाक़िया लहजे में लिखने की वजह से पूरी यात्रा हँसी-ख़ुशी करा देते हैं। जुलाई 26, 2011 को प्रकाशित श्रीखण्ड महादेव यात्रा से एतद् सम्बन्धी एक उदाहरण प्रस्तुत है-
‘‘सावन का महीना हो, हिमालय पर घूमने जा रहे हों वह भी आठ दिनों के लिए और बारिश न हो, बिल्कुल असम्भव बात है।...चारों ने अपनी-अपनी बरसाती पहन ली। जैसे ही नितिन बाइक पर बैठा तो उसकी फट गई। साथ ही विपिन की भी फट गई। और फटी भी पैरों के बिल्कुल बीच से। बस तभी से सबकी ज़ुबान पर ‘फट गई’ बस गया और वापसी तक भी पीछा नहीं छोड़ा। और जिनकी फटी थी वे बन्दे भी इतने मस्त थे कि नारकण्डा जाकर होटल वाले से सुई माँगी तो यही कहकर कि ‘भईया हमारी फट गई है, सुई-धागा दे दो।’ अब ऐसे में कोई कितना भी मुँह फुलाए बैठा हो चेहरे पर मुस्कान तो आ ही जाएगी।’’17
नीरज जी के यात्रा-वर्णनों में छायांकन भी उच्चकोटि को होता है। लगता है वे कुशल छायाकार हैं। प्राकृतिक दृश्य, मन्दिर, पहाड़, नदियां आदि उनके छायाचित्र में सजीव हो उठते हैं तथा बहुत कुछ बिना वर्णन किए ही पाठक को बता जाते हैं।
नीरज जी अब भी यात्रा में हैं। 21 अक्टूबर, 2011 को ‘मुसाफ़िर हूँ यारों’ ब्लॉग पर प्रकाशित उनकी ‘पिण्डारी ग्लेशियर यात्रा- पहला दिन (दिल्ली से बागेश्वर)’18 संस्मरण आज 28-10-2011 तक का एकदम ताज़ातरीन संस्मरण है।
नीरज जी अब भी यात्रा में हैं। 21 अक्टूबर, 2011 को ‘मुसाफ़िर हूँ यारों’ ब्लॉग पर प्रकाशित उनकी ‘पिण्डारी ग्लेशियर यात्रा- पहला दिन (दिल्ली से बागेश्वर)’18 संस्मरण आज 28-10-2011 तक का एकदम ताज़ातरीन संस्मरण है।
डॉ. विजय कुमार शुक्ल ‘विजय’: परिचय और समीक्षण
गर्गकुल-आभूषण, यशस्वी कवि, लेखक और यायावर डॉ. विजय कुमार शुक्ल ‘विजय’19 का जन्म 22 अप्रैल, 1946 ई. को ढढ़ौआ, मेहनिया, जनपद गोण्डा (उ0 प्र0) में हुआ। आपकी प्रारम्भिक शिक्षा गांव के ही प्राईमरी पाठशाला से प्रारम्भ हुई। हिन्दी के प्राध्यापक पं0 राघवशरण त्रिपाठी के उत्साह-वर्द्धन से आप में कवित्व का संचरण हुआ। गोरखपुर विश्वविद्यालय से आपने उच्च शिक्षा ग्रहण करके पटना विश्वविद्यालय से अनुवांशिकी विज्ञान में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। आप एम.एल.के.पी.जी. कॉलेज बलरामपुर में बॉटनी के यशस्वी व्याख्याता रह चुके हैं। सम्प्रति श्रीमती जे. देवी महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बभनान, गोण्डा, उ0प्र0 में आप प्राचार्य पद को सुशोभित कर रहे हैं।
आपने देश-विदेश की कई यात्राएं कीं। ब्लॉग ‘तिमिर-रश्मि’20 पर आपके तीन यात्रा-वृत्त- ‘फूलों की घाटी’21, ‘अमरनाथ यात्रा’22 और ‘कारगिल संस्मरण’ प्रकाशित हैं। यूथ हॉस्टल एसोसिएशन ऑव् इण्डिया उ.प्र. पत्रिका ‘यायावर’ के एकादश-द्वादश वार्षिकांक 1988-89 में आपका एक यात्रा-वृत्त- ‘घुमाई में पढ़ाई: नेचर स्टडी कैम्प’ प्रकाशित हुआ। आप अपने समय के बहुत बड़े घुमक्कड़ रहे हैं। कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, गोवा आदि आपके पैरों तले रहा है। इंग्लैण्ड और जापान की आपने दो बार यात्राएं कीं। आपकी अन्य विदेशी यात्राओं में नीदरलैण्ड, स्विट्ज़रलैण्ड, जर्मनी और थाईलैण्ड प्रमुख हैं।
तिमिर-रश्मि ब्लॉग पर स्थित आपके यात्रा-वृत्त फूलों की घाटी, कारगिल संस्मरण और अमरनाथ यात्रा पढ़ने से लगता है कि आपकी लेखनी का प्रवाह आपकी यात्रा-गति से कम नहीं है। भाषा शैली ऐसी मनोरंजक कि पाठक को बिना पूरी यात्रा कराए उठने ही न दे, बिल्कुल प्रसिद्ध लेखक और उपन्यासकार श्रीलाल शुक्ल जी की तरह। आपकी भाषा बहुधा तत्सम शब्दों से सुसज्जित होती है पर इतनी क्लिष्ट भी नहीं कि समझ में न आए। इसकी रवानी एकदम नदी की धार जैसी। आपने अपने यात्रा-वृत्तान्त में ऐसे तमाम बिम्बों का चित्रण किया है जो हमें सांस्कृतिक धरोहरों के बारे में सोचने-समझने के प्रति उत्साहित करते हैं। फूलों की घाटी से एक उदाहरण प्रस्तुत है-
‘‘बलरामपुर से लखनऊ, एवं लखनऊ से हरिद्वार की यात्रा तो कट गई इस कल्पनालोक में अपने मनपसन्द रंग भरने में, तन्द्रा टूटी तो अपने को खड़ा पाया पतित-पावनी गंगा के श्री चरणों में ‘हरि की पैड़ी’ पर। हल्की बारिश में भीगते हुए हरि की पैड़ी का अनवरत क्षिप्र प्रवाह उसी गति से हमें मानव-सभ्यता के आदिम इतिहास की ओर ले जा रहा था जब हमारे पूर्वज इसी कल्याणकारी शक्ति से अभिभूत हो इसके किनारे बसते चले गये थे।’’
परिवेशांकन में आपका कोई सानी नहीं है और उसको अपने यात्रा-वृत्त में आप ऐसी मनोरंजक अभिव्यक्ति दे देते हैं कि पाठक उसी में रम जाय। फूलों की घाटी से ही एक उदाहरण-
‘‘अपने पूर्व कार्यक्रम के अनुसार हम अलकनन्दा पार करके मन्दाकिनी के किनारे-किनारे पर्वतों की व्यथा-कथा सुनते आगे बढे़। केदारनाथ से 57 किमी. पहले बस बेबस हो गई। रास्ता बन्द...घुप अंधेरा, घनघोर बारिश रज़ाई-गद्दों में पिस्सुओं की पूरी फ़ौज का सामना करते हुए रात आँखों में कट गई। आराम से कोई सोया तो भाष्कर दीक्षित, जिसके रक्त में कदाचित कोई पिस्सूमार ज़हर रहा होगा।...काफ़ी द्रुत गति से बढ़ चले हम गौरीकुण्ड के तप्त कुण्ड की ओर, इस आशा में कि पिस्सू दंशित इस चोले को कुछ तो आराम मिलेगा गर्म जलधारा में।...आनन-फ़ानन में भागते-दौड़ते (पिस्सू पावर से) सीधे कुण्ड में गोता लगा गये। पानी काफ़ी गरम परन्तु आरामदायक था। पिस्सुओं की क्या गति हुई ये वही जानें, परन्तु हम लोग तो बिल्कुल थकान और पिस्सू रहित हो गये उस परम् पवित्र कुण्ड में स्नान करके।’’
आपकी मनोरंजक प्रस्तुति मन को मोह लेती है। बद्रीनाथ से वापसी में ट्रैफ़िक जाम होने के कारण कैसे जाया जाय इसी उहापोह की स्थिति में आप फूलों की घाटी में लिखते हैं-
‘‘बनारस के एक मास्टर साहब अपने कुछ मित्रों के साथ एक जीप पर सवार वापसी की तैयारी कर रहे थे। तुरन्त बनारसी बाबू से ससुराली रिश्ता जोड़ा। वे बहुत ख़ुश हुए। इसलिए नहीं कि रिश्ता ससुराली था वरन् इसलिए कि उनकी जीप धक्कापरेड थी और हम चार मुस्टंडों को देखकर उन्हें आशा बंधी कि हम लोग अपने बुल पावर का प्रयोग कर गाड़ी स्टार्ट तो करवा ही देंगे। सहकारी भाव विकसित हुआ और लगे हम जीप ढकेलने।’’
फूलों की घाटी की प्राकृतिक सुषमा का ज़िक्र करते हुए आप लिखते हैं कि-
‘‘बीच में कई बर्फ़ के पुल एवं कई भोजपत्र के जंगलों से होते हुए पुष्पावती नदी के किनारे-किनारे जब फूलों की घाटी पहॅँचे तो उस प्राकृतिक सुषमा का पान किया जो अपने में अद्वितीय तो है ही पर निहायत शालीन। गन्धमादन पर्वत पर मादक गन्धों से मन द्रौपदी और पाण्डवों के साथ-साथ चलने लगता है। कामथ गिरि (commet) का भव्य रजत रूप सुन्दर पुष्पों एवं चंचल पुष्पगंगा को अहर्निश निहारता रहता है।’’
‘‘बीच में कई बर्फ़ के पुल एवं कई भोजपत्र के जंगलों से होते हुए पुष्पावती नदी के किनारे-किनारे जब फूलों की घाटी पहॅँचे तो उस प्राकृतिक सुषमा का पान किया जो अपने में अद्वितीय तो है ही पर निहायत शालीन। गन्धमादन पर्वत पर मादक गन्धों से मन द्रौपदी और पाण्डवों के साथ-साथ चलने लगता है। कामथ गिरि (commet) का भव्य रजत रूप सुन्दर पुष्पों एवं चंचल पुष्पगंगा को अहर्निश निहारता रहता है।’’
जगह-जगह शुक्ल जी का मज़ाक़िया लेखन यात्रा-वृत्तान्त में रोचकता ला देता है। फूलों की घाटी की सुन्दरता और पुष्पों के सुगन्ध की मादकता के बारे में वर्णन करते समय एक जगह शुक्ल जी लिखते हैं कि-
‘‘एक गुजराती सज्जन ने पराठे खिलाए और कहा कि अच्छा है ये फूल गुजरात में नहीं होते वर्ना इनकी मदमाती सुगन्ध वहां की दारू इण्डस्ट्री ही बन्द करवा देती। शायद दारू का व्यापार था उनका।’’
फूलों की घाटी से वापस घर आने का रोचक विवरण शुक्ल जी कुछ यूँ करते हैं-
‘‘...उन्हीं जानी पहचानी चढ़ाइयों की उतराई नापते हुए हम गृहोन्मुख हुए तो सब-के-सब चुप, अपने से बतियाते एवं नवोदित सौन्दर्य-बोध की गहराइयों को थहाते, बहुत कुछ नया देख पाने की ख़ुशी और उसके दूर जाने के दुःख का एक साथ अनुभव करते जब हम नापे हुए क़दमों का हिसाब लगाने बैठे तो पता चला कि फ़क़त 170 किमी. की पदयात्रा करके हम चारो बुद्धू घर को लौटे हैं।’’
‘‘...उन्हीं जानी पहचानी चढ़ाइयों की उतराई नापते हुए हम गृहोन्मुख हुए तो सब-के-सब चुप, अपने से बतियाते एवं नवोदित सौन्दर्य-बोध की गहराइयों को थहाते, बहुत कुछ नया देख पाने की ख़ुशी और उसके दूर जाने के दुःख का एक साथ अनुभव करते जब हम नापे हुए क़दमों का हिसाब लगाने बैठे तो पता चला कि फ़क़त 170 किमी. की पदयात्रा करके हम चारो बुद्धू घर को लौटे हैं।’’
इस प्रकार शुक्ल जी की भाव-सम्प्रेषणीयता का अन्दाज़ ग़ज़ब का है। उनका कोई भी विवरण चाहे फूलों की घाटी हो, अमरनाथ यात्रा हो अथवा कारगिल संस्मरण, सभी अपनी रोचकता से पाठक को आद्यन्त बाँधे रहते हैं। आपके यात्रा-संस्मरणों में वे सभी तत्त्व विद्यमान हैं जो एक श्रेष्ठ यात्रा-वृत्तान्त में होने चाहिए।
कुछ और प्रमुख ब्लॉगों पर स्थित यात्रा-वृत्तों की समीक्षा निम्नवत् प्रस्तुत की जा रही है जो कम महत्त्व की नहीं है-
‘प्रातःकाल’ के प्रधान सम्पादक ‘श्री सुरेश गोयल का ब्लॉग’23 पर प्रकाशित श्री गोयल जी के 313 यात्रा-वृत्तान्त मौजूद हैं। इनका विवरण निम्नवत् है-
क- आल्प्स की गोद में- 11
ख- चीन व जापान की यात्रा का वृत्तान्त- 72
ग- दक्षिण अफ़ीक़ा यात्रा-संस्मरण- 16
घ- नाइजीरिया यात्रा के संस्मरण- 31
ङ- पाकिस्तान यात्रा- 59
च- सुदूर पूर्व यात्रा संस्मरण- 123
सुरेश गोयल भारत के प्रतिष्ठित पत्रकार लेखक हैं। प्रसिद्ध राष्ट्रीय दैनिक प्रातः काल के प्रधान सम्पादक सुरेश गोयल देश के उन गिने चुने पत्रकारों में हैं जिन्हें प्रधानमन्त्री द्वारा की जाने वाली राजकीय विदेश यात्राओं में सम्मिलित किया जाता है। यात्रा इतिहास तथा पर्यटन पर इन्होंने हिन्दी और अंग्रेज़ी में कई पुस्तकें लिखी हैं।
‘हिन्दी कविताएं आपके विचार’24 ब्लॉग पर राजेश कुमारी25 द्वारा 29 अगस्त, 2011 तथा 31 अगस्त, 2011 को क्रमशः प्रकाशित दो यात्रा-वृत्तान्त ‘कश्मीर से लेह लद्दाख़ तक’26 तथा ‘लेह लद्दाख़ से चुमाथांग हॉट स्प्रिंग 14000 फीट की झलकियां’27 उल्लेखनीय हैं इन यात्रा-वृत्तान्तों में सम्बन्धित गन्तव्य स्थलों के प्राकृतिक सौन्दर्य का सचित्र मनोरम वर्णन किया गया है। लेह लद्दाख़ से चुमाथांग हॉट स्प्रिंग यात्रा-वृत्त में कारगिल की ओर बढ़ते समय अपनी मनोदशा का वर्णन करते हुए लेखिका ने लिखा है कि- ‘‘धीरे-धीरे हम कारगिल की ओर बढ़ रहे थे। 1999 कारगिल वार की यादें जे़हन में ताज़ा हो गईं। रास्ते में कुछ युद्ध के समय के टूटे घर, सेना के बंकर आज भी मौजूद हैं। परन्तु शान्त जीवन दिखाई दिया।’’ चुमाथांग के हॉट स्प्रिंग का वर्णन करते हुए लेखिका लिखती है कि- ‘‘अज़ीब अद्भुत क़ुदरत का नज़ारा था। ज़मीन के नीचे से उबलता हुआ पानी चल रहा था। पास नदी बह रही थी। उसके किनारे बहुत सारे ऐसे पॉइंट थे जहां से उबलता हुआ पानी निकल रहा था। कहीं-कहीं पानी उछल कर निकल रहा था। वह पानी प्राकृतिक मेडिसिन का काम करता है। पीने से पेट के रोग का निवारण होता है तथा नहाने से त्वचा ठीक रहती है। चुमाथांग का अर्थ ही है औषधि वाला पानी।’’
‘जाट देवता का सफ़र’28 ब्लॉग पर सन्दीप पवार जी29 के यात्रा-संस्मरणों- हिमाचल प्रदेश (11), जम्मू-कश्मीर (9), उत्तर प्रदेश (7), उत्तराखण्ड (2), दिल्ली (2), मिले-जुले यात्रा-संस्मरण (2), हरियाणा (1) उपलब्ध है। ‘श्री खण्ड महादेव वापसी’ (रामपुर-रोहदू-चकराता) भाग10 उनका नवीनतम यात्रा-वृत्त है जो 28 अगस्त, 2011 को इस ब्लॉग पर प्रकाशित हुआ। इसी यात्रा-वृत्त में, रामपुर में एक व्यक्ति से पेट्रोल पम्प के बारे में पूछने का ज़िक्र उन्हीं के शब्दों में- ‘‘जब एक जीप वाले से पूछा भाई पेट्रोल पम्प कहाँ है तो वह उल्लू की पूंछ पेट्रोल पम्प तो बताने से रहा, बल्कि हमारे लट्ठ देख कर बोला कि पहले गन्ना खिलावो तब बताऊँगा कि पेट्रोल पम्प कहाँ है। जब उसके मुँह के आगे लट्ठ अड़ा दिए तो उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं कि गन्ने लट्ठ कैसे हो गये।’’ श्री खण्ड महादेव वापसी का अब तक 10 भाग प्रकाशित हो चुका है। इन यात्रा-वृत्तान्तों का सचित्र वर्णन मन को मोह लेने वाला है।
‘उसने कहा था’30 ब्लॉग पर माधवी शर्मा गुलेरी31 के कई यात्रा-वृत्त उपलब्ध हैं। इनमें प्रमुख हैं- 'ईश्वर की अपनी धरती'32, 'ब्रह्म गिरि पहाड़ियों में लिपटा भारत का स्कॉटलैंड'33, 'सैर सबसे छोटे हिल स्टेशन की'34, 'अश्व की वल्गा लो अब थाम दिख रहा मानसरोवर कूल'35, 'चलें दक्षिण के मैकलोडगंज'36, 'नीले समन्दर में मोती सा मॉरिशस'37 और 'कोंकण किनारे इक ख़ूबसूरत पड़ाव'38। मॉरिशस की प्राकृतिक छटाओं का स्वाभविक दर्शन कराती हुई लेखिका लिखती है-
‘‘नीले पानी की चादर... हरियाली से लिपटे पहाड़ और दूर तक फैली सफ़ेद चमकती रेत 45 किमी0 चौड़े और 65 किमी0 लम्बे इस द्वीप को देखकर लगता है जैसे क़ुदरत यहाँ ख़ुद आ बसी हो...।’’ वहाँ के बीच के बारे में एक स्थान पर लिखा है- ‘‘दूर तक फैले साफ़-सुथरे और ख़ूबसूरत बीच पर पहुँच कर लगा जैसे हम किसी शहंशाह से कम नहीं थे। सुहावना मौसम, नीला-हरा पानी, सफ़ेद नर्म रेत और उस पर धूप स्नान करते सैलानी।’’
‘‘नीले पानी की चादर... हरियाली से लिपटे पहाड़ और दूर तक फैली सफ़ेद चमकती रेत 45 किमी0 चौड़े और 65 किमी0 लम्बे इस द्वीप को देखकर लगता है जैसे क़ुदरत यहाँ ख़ुद आ बसी हो...।’’ वहाँ के बीच के बारे में एक स्थान पर लिखा है- ‘‘दूर तक फैले साफ़-सुथरे और ख़ूबसूरत बीच पर पहुँच कर लगा जैसे हम किसी शहंशाह से कम नहीं थे। सुहावना मौसम, नीला-हरा पानी, सफ़ेद नर्म रेत और उस पर धूप स्नान करते सैलानी।’’
पल्लवी सक्सेना39 के ब्लॉग ‘मेरे अनुभव’40 पर 13 नवम्बर, 2010 तथा 22 अगस्त, 2011 को क्रमशः प्रकाशित उनके यात्रा-वृत्त 'इटली विज़िट'41 तथा 'भारत भ्रमण'42 उल्लेखनीय हैं। पल्लवी सक्सेना मांचेस्टर, यूनाइटेड किंगडम की रहने वाली अप्रवासी भारतीय हैं। उन्होंने अपने यात्रा-वर्णनों में गन्तव्य स्थलों के ऐतिहासिक महत्त्व की जगहों का रोमांचक विवरण प्रस्तुत किया है। पीसा की टेढ़ी मीनार, रोम के संग्रहालय और गिरिजाघरों तथा फ्लोरेंस के पेंटिंग्स का स्पष्ट दर्शन कराता उनका इटली विज़िट सोधित्सुओं के लिए महत्त्वपूर्ण है।
सुनील दीपक43 के ब्लॉग ‘जो न कह सके’44 पर फ़रवरी 25, 2009, जून 9, 2011 और जून 10, 2011 को प्रकाशित उनका यात्रा-वृत्त क्रमशः 'एक अन्य अयोध्या'45, 'ब्राज़ील डायरी-1'46 तथा 'ब्राज़ील डायरी-2'47 मुख्य हैं। उन्हीं के शब्दों में- ‘‘पिछले दिनों मुझे ब्राज़ील के गोयास और परा प्रदेशों में यात्रा का मौक़ा मिला, उसी यात्रा से मेरी डायरी के कुछ पन्ने प्रस्तुत हैं।’’ ब्राज़ील डायरी में जहाँ-जहाँ उन्होंने यात्राएं कीं उन्हें वे ब्राज़ील डायरी-1 में- (क) 24 मई, 2011, गोयास वेल्यो (ख) 25 मई, 2011, गोयास वेल्यो (ग) 28 मई, 2011 गोयानियां; ब्राज़ील डायरी-2 में- 3 जून, 2011, अयाबतेतूबा नामक शीर्षकों में प्रस्तुत करते हैं। अयाबतेतूबा (परा) के बारे में सुनील दीपक जी लिखते हैं कि- ‘‘ब्राज़ील में गोरे, काले, भूरे हर रंग के लोग मिलते हैं। अफ़्रीक़ी, अमेरंडियन और यूरोपीय लोगों के सम्मिश्रण से एक ही परिवार में तीनों जातियों के चेहरे दिखते हैं। अक्सर लड़के और लड़कियां छोटे-छोटे कपड़े पहनते हैं और शारीरिक नग्नता पर कोई ध्यान नहीं देता।’’ एक जगह पर इन वस्त्र-विन्यासों के बारे में दीपक जी लिखते हैं- ‘‘भारत में इस तरह के कपड़े बड़े शहरों में अमीर घर के लोग ही पहनते हैं इसलिए उनको देखकर अक्सर उनकी ग़रीबी को तार्किक स्तर पर समझता हूँ लेकिन भावनात्मक स्तर पर महसूस नहीं कर पाता हूँ। मन में कुछ अजीब सा लगता है। गोरा चेहरा, सुनहले बाल और छोटे आधुनिक कपड़े ऐसे लोग ग़रीब कैसे हो सकते हैं।’’ अयाबतेतूबा में व्याप्त पारिवारिक हिंसा का दीपक जी ने बहुत ही स्पष्ट और मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया है- ‘‘ग़रीबी और भूख से भी अधिक चुभती हैं परिवार में हिंसा की कहानियां, विशेषकर यौन हिंसा की कहानियां। अमेजन जंगल में नदियों में हजारों द्वीप हैं जिनमें रहने वाले रिबारीन लोग हैं। उनमें छोटी-छोटी 14-15 साल की गर्भवती लड़कियों को देखकर बड़ा दुःख होता है। नदी के किनारे घर है, एक दूसरे से कटे हुए। जहां एक घर से दूसरे घर जाने के लिए नाव से ही जा सकते हैं। जंगल को पार करके जाना बहुत कठिन है। इस तरह हर परिवार अपने आप में द्वीप सा है। मेरे साथ की सोशल वर्कर ने बताया कि अक्सर नाबालिग़ लड़कियों से यौन-सम्बन्ध बनाने वाले उनके पिता या अन्य पुरुष रिश्तेदार होते हैं। इस तरह एक परिवार में पति-पत्नी उनके बच्चे और पिता और बेटियों के बच्चे साथ-साथ देखने को मिले। जब एक युवती से मैंने उसके पति के बारे में पूछा तो उसने सहजता से कहा कि उसका पति नहीं है बल्कि उसके बच्चे उसके पिता के ही साथ हुए हैं। इस तरह के परिवार भी बहुत देखे जहां घर में एक स्त्री के तीन-चार बच्चे थे लेकिन हर बच्चे का पिता अलग पुरुष था।’’
आपसे आनन-फानन में ईमेल से सम्पर्क करने पर आपने अपने परिचय और उपलब्धियों के बारे में मेरे उसी ईमेल पर रिप्लाई करके जिस प्रकार से सूचना देने की उदारता दिखाई है उससे मैं अभिभूत हूँ और उसको उसी रूप में यहाँ प्रस्तुत कर दे रही हूँ। मेरे विचार से आपके बारे में पूरी जानकारी देने में आपका यह ईमेल ही पर्याप्त है-
Re: [मुसाफ़िर हूँ यारों ... ( Musafir Hoon Yaaron ...)] New comment on रंगीलो राजस्थान: राँची से उदयपुर तक का सफ़र !.
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सुनील दीपक43 के ब्लॉग ‘जो न कह सके’44 पर फ़रवरी 25, 2009, जून 9, 2011 और जून 10, 2011 को प्रकाशित उनका यात्रा-वृत्त क्रमशः 'एक अन्य अयोध्या'45, 'ब्राज़ील डायरी-1'46 तथा 'ब्राज़ील डायरी-2'47 मुख्य हैं। उन्हीं के शब्दों में- ‘‘पिछले दिनों मुझे ब्राज़ील के गोयास और परा प्रदेशों में यात्रा का मौक़ा मिला, उसी यात्रा से मेरी डायरी के कुछ पन्ने प्रस्तुत हैं।’’ ब्राज़ील डायरी में जहाँ-जहाँ उन्होंने यात्राएं कीं उन्हें वे ब्राज़ील डायरी-1 में- (क) 24 मई, 2011, गोयास वेल्यो (ख) 25 मई, 2011, गोयास वेल्यो (ग) 28 मई, 2011 गोयानियां; ब्राज़ील डायरी-2 में- 3 जून, 2011, अयाबतेतूबा नामक शीर्षकों में प्रस्तुत करते हैं। अयाबतेतूबा (परा) के बारे में सुनील दीपक जी लिखते हैं कि- ‘‘ब्राज़ील में गोरे, काले, भूरे हर रंग के लोग मिलते हैं। अफ़्रीक़ी, अमेरंडियन और यूरोपीय लोगों के सम्मिश्रण से एक ही परिवार में तीनों जातियों के चेहरे दिखते हैं। अक्सर लड़के और लड़कियां छोटे-छोटे कपड़े पहनते हैं और शारीरिक नग्नता पर कोई ध्यान नहीं देता।’’ एक जगह पर इन वस्त्र-विन्यासों के बारे में दीपक जी लिखते हैं- ‘‘भारत में इस तरह के कपड़े बड़े शहरों में अमीर घर के लोग ही पहनते हैं इसलिए उनको देखकर अक्सर उनकी ग़रीबी को तार्किक स्तर पर समझता हूँ लेकिन भावनात्मक स्तर पर महसूस नहीं कर पाता हूँ। मन में कुछ अजीब सा लगता है। गोरा चेहरा, सुनहले बाल और छोटे आधुनिक कपड़े ऐसे लोग ग़रीब कैसे हो सकते हैं।’’ अयाबतेतूबा में व्याप्त पारिवारिक हिंसा का दीपक जी ने बहुत ही स्पष्ट और मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया है- ‘‘ग़रीबी और भूख से भी अधिक चुभती हैं परिवार में हिंसा की कहानियां, विशेषकर यौन हिंसा की कहानियां। अमेजन जंगल में नदियों में हजारों द्वीप हैं जिनमें रहने वाले रिबारीन लोग हैं। उनमें छोटी-छोटी 14-15 साल की गर्भवती लड़कियों को देखकर बड़ा दुःख होता है। नदी के किनारे घर है, एक दूसरे से कटे हुए। जहां एक घर से दूसरे घर जाने के लिए नाव से ही जा सकते हैं। जंगल को पार करके जाना बहुत कठिन है। इस तरह हर परिवार अपने आप में द्वीप सा है। मेरे साथ की सोशल वर्कर ने बताया कि अक्सर नाबालिग़ लड़कियों से यौन-सम्बन्ध बनाने वाले उनके पिता या अन्य पुरुष रिश्तेदार होते हैं। इस तरह एक परिवार में पति-पत्नी उनके बच्चे और पिता और बेटियों के बच्चे साथ-साथ देखने को मिले। जब एक युवती से मैंने उसके पति के बारे में पूछा तो उसने सहजता से कहा कि उसका पति नहीं है बल्कि उसके बच्चे उसके पिता के ही साथ हुए हैं। इस तरह के परिवार भी बहुत देखे जहां घर में एक स्त्री के तीन-चार बच्चे थे लेकिन हर बच्चे का पिता अलग पुरुष था।’’
सम्प्रति सुनील दीपक जी इटली के बोलोनिया शहर में रहते हैं और पेशे से डॉक्टर हैं। परन्तु साहित्य में इनकी अभिरुचि किंचित भी कम नहीं है। आप एक वेब पत्रिका ‘कल्पना’ का सफल सम्पादन भी कर रहे हैं जो हिन्दी अंग्रज़ी और इतावली भाषाओं में प्रकाश्य है।
ब्लॉग पर स्थित यात्रा-वृत्तान्तों और उसके लेखकों की चर्चा करते समय यायावर, लेखक श्रीमान् मनीष कुमार48 का नाम न लिया जाय तो बेमानी होगी। आपके बारे में हमें जानकारी नहीं थी किन्तु आदरणीय समीरलाल जी का आभार व्यक्त करूँगी कि उन्होंने आपका केवल नाम ही नहीं सुझाया बल्कि आपके ब्लॉग का पता भी दिया। जब मैंने आपके ब्लॉग ‘मुसाफ़िर हूँ यारों’49 की यात्रा की तो पता चला कि यहाँ तो न केवल यात्रा-वृत्तान्तों का ख़ज़ाना है अपितु यह ब्लॉग यात्रा-वृत्त को ही समर्पित है जो गन्तव्य स्थलों के प्राकृतिक, सामाजिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरों को बख़ूबी संजोये हुए है।आपसे आनन-फानन में ईमेल से सम्पर्क करने पर आपने अपने परिचय और उपलब्धियों के बारे में मेरे उसी ईमेल पर रिप्लाई करके जिस प्रकार से सूचना देने की उदारता दिखाई है उससे मैं अभिभूत हूँ और उसको उसी रूप में यहाँ प्रस्तुत कर दे रही हूँ। मेरे विचार से आपके बारे में पूरी जानकारी देने में आपका यह ईमेल ही पर्याप्त है-
Shalini Pandey <pandey.shalini9@gmail.com> |
Re: [मुसाफ़िर हूँ यारों ... ( Musafir Hoon Yaaron ...)] New comment on रंगीलो राजस्थान: राँची से उदयपुर तक का सफ़र !.
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Manish Kumar <manish.cet@gmail.com> | Mon, Oct 31, 2011 at 8:16 PM | |
To: शालिनी पाण्डेय <pandey.shalini9@gmail.com> | ||
|
इस प्रकार ब्लॉगों पर पर्याप्त परिमाण में यात्रा-वृत्त प्रकाशित हैं जिनकी महत्ता को नकारा नहीं जा सकता। इनमें वे सभी तत्त्व हैं जो एक श्रेष्ठ और स्तरीय यात्रा-वृत्त में होने चाहिए।
नोट-
यह आलेख मयशीर्षक हमारे चल रहे रिसर्च प्रोजेक्ट ‘‘हिन्दी के यात्रा-वृत्तान्त : प्रकृति और प्रदेय’’ का एक हिस्सा है। इसमें शामिल यात्रा-वृत्त के विद्वान् लेखकों और सुधी पाठकों से साधु टिप्पणी तथा दिशा-निर्देशन की महती अपेक्षा है। मैं चाहती हूँ कि यहीं से प्रिंट लेकर शोध प्रबन्ध में इसे टिप्पणी सहित शामिल कर लूँ, जिससे हिन्दी ब्लॉगों की सामग्री ब्लॉगरों तक ही न सीमित होकर भविष्य में भी शोध और चर्चा का विषय बने। चूँकि इस दिशा में प्रथम क़दम मैं ही रख रही हूँ इसलिए भी आप सब के दिशा-निर्देश की आवश्यकता और शिद्दत से महसूस कर रही हूँ। विश्वास है आप सब निराश नहीं करेंगे। सादर-
सन्दर्भ-
- http://www.blogger.com/profile/06057252073193171933
- http://udantashtari.blogspot.com/
- http://udantashtari.blogspot.com/
- http://udantashtari.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html
- http://udantashtari.blogspot.com/2011/08/blog-post_23.html
- http://www.blogger.com/profile/07611846269234719146
- http://shikhakriti.blogspot.com/2010/06/blog-post_11.html
- http://shikhakriti.blogspot.com/2010/12/blog-post_04.html
- http://shikhakriti.blogspot.com/2010/11/blog-post_11.html
- http://shikhakriti.blogspot.com/2010/06/blog-post.html
- http://shikhakriti.blogspot.com/2010/09/blog-post.html
- http://shikhakriti.blogspot.com/2010/01/blog-post_18.html
- http://shikhakriti.blogspot.com/2010/07/blog-post_07.html
- http://shikhakriti.blogspot.com/2011/05/blog-post_06.html
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- http://hindikavitayenaapkevichaar.blogspot.com/2011/08/blog-post_31.html
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- http://guleri.blogspot.com/2011/04/blog-post_06.html
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बहुत आभार इस स्नेह हेतु और मेरे लेखन को स्थान देने के लिए...
ReplyDeleteयह सच है कि आजकल चिट्ठों की वजह से सारी दुनिया की छुपी हुई या अनजानी जगहों के बारे में जानने देखने का मौका मिल जाता है. कुछ लोग जगह का विवरण कम लिखते हैं बल्कि तस्वीरें अधिक लगाते हें, जोकि सुन्दर हों तो अच्छा लगती हैं और मन में आता कि अगली उस तरफ़ जाने का मौका मिलेगा तो उस जगह को अवश्य देखने जायेंगे. पर यात्रा के बारे में दिलचस्प तरीके से लिखना कम ही मिलता है, अधिकतर लोग "इतने बजे चले, वहाँ रुक कर खाया, वहाँ पहुँचे" जैसी बातों तक ही रुक जाते हैं जिनसे उस जगह की विशिष्ठता वहाँ के लोगों की विशिष्ठता के बारे में पता नहीं चलता. मुझे लेखक तथा साहित्यकार ओम थानवी का यात्रा लेखन बहुत अच्छा लगता है, उनके लेखन में नयी दुनिया देखने समझने को मिलती है.
ReplyDeleteपर यात्रा के केवल दूर जाना ही आवश्यक नहीं है, कई बार अपने रहने वाली जगह के आसपास भी इस तरह की अनजानी पर देखने योग्य जगहें हो सकती हैं.
बडी खुशी होती है जब कोई यात्रियों को याद करता है। और इससे यात्रियों को मनोबल भी मिलता है। सच में, मुझे यात्रा करने का सारा मनोबल केवल यात्रा-वृत्तान्त लिखने और उन पर आये सन्देशों से मिलता है।
ReplyDeleteएक बात और बताऊं कि मुझे पर्यटन बिल्कुल भी पसन्द नहीं है। मुझे पसन्द है- घुमक्कडी। घुमक्कडी एक पागलपन है जो इंसान को धकेलती है कि बाहर निकल, घूम के आ। अब जब किसी को धकेल दिया जाता है तो वो कहीं ना कहीं तो जायेगा ही, बिना किसी पूर्व योजना के, बिना ठिकाने के। बडा मजा आता है जब कहीं शाम को ठिकाना नहीं मिलता और हम अनजान लोगों से कहते हैं कि भाई, जरा सी पडने की जगह मिलेगी क्या? और जगह मिल जाती है।
राहुल बाबा कहते हैं कि घुमक्कडी करने से ज्यादा जरूरी उसे लिखना है, दुनिया में बांटना है।
बहुत सराहनीय कार्य है आपका! विभिन्न लेखकों के यात्रा वृतांतों का बखूबी विवरण किया है इससे लेखकों को तो प्रसन्नता और मनोबल मिलेगा ही साथ साथ और लोगों को भी नए नए स्थानों की जानकारी मिलेगी ,उन्हें देखने की उत्सुकता बढ़ेगी तथा भ्रमण क्षेत्र में बढ़ोत्तरी होगी! बहुत आभारी हूँ कि मेरे कश्मीर यात्रा के विवरण को आपने शामिल किया है !
ReplyDeleteशालिनी ! यह हिंदी साहित्य का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि यात्रावृतांत विधा में बहुत कम साहित्य देखने को मिलता है.इन परिस्थितियों में हिंदी ब्लॉग पर लिखे गए यात्रावृतांत निश्चित ही अहम स्थान रखते हैं.ब्लॉग पर लिखे गए ये यात्रा वृत्त न सिर्फ सरल और सजह भाषा में लिखे हुए तथा मौलिकता से पूर्ण होते हैं बल्कि अपने अंदर बहुत से महत्वपूर्ण तथ्य और मनोरंजन भी समेटे होते हैं.अत: आपका यह शोध कार्य बेहद सराहनीय और एक महत्वपूर्ण कदम है.हिंदी ब्लॉग जगत में मनोज कुमार, ललित शर्मा और पी एन सुब्रह्मण्यम द्वारा समय समय पर अपने ब्लॉग पर लिखे हुए यात्रावृत्त भी उल्लेखनीय हैं.
ReplyDeleteसच में बहुत सराहनीय कार्य है आपका!बहुत अच्छा लगा यह देखकर कि आपने मेरे "इटली भ्रमण" वाले ब्लॉग को यहाँ स्थान दिया इस बात के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया... आपके इस प्रयास के माध्यम से अन्य कई लोगों कि यात्रा पढ़ने को मिली जो कि बहुत दिलचस्प लगी धन्यवाद....
ReplyDeleteजब ब्लॉग पर यात्रा वृतांत लिखने की बात हो तो
ReplyDeleteमनीष कुमार 'मुसाफिर हूँ यारों'
का जिक्र बहुत जरुरी हो जाता है. मुझे याद आता उनकी पचमढ़ी यात्रा और अन्डमान यात्रा का जबरदस्त वृतांत. पचमढ़ी यात्रा में उन्होंने जिस तरह भवानी प्रसाद मिश्र की 'सतपुड़ा के घने जंगल' जैसी नामी रचना को पिरोया था, आज तक मन पत अंकित है.
http://travelwithmanish.blogspot.com/
इस ब्लॉग को जरुर देखा जाये.
शालिनी जी आपने बडी मेहनत से विभिन्न ब्लॉगों को तलाशने के बाद जो परिणाम सबके सामने हाजिर किया है उसकी जितनी प्रशंसा की जाय कम ही रहेगी। जितने भी ब्लॉग आपने दर्शाये है उसमें से मुझे दोस्त नीरज जाट जी का ब्लॉग सबसे ज्यादा पसंद है, आपके द्धारा एक नये लिंक के बारे में ही जान पाया हूँ। उम्मीद थी कि कई लिंक मिलेंगे। लेकिन ऐसा हो ना सका, हो सके तो और मेहनत करके ज्यादा ब्लॉगों के बारे में विस्तार से बताये, भले ही दो की जगह तीन लेख करने पड जाये। आपका ये लेख पढने के बाद बहुत से लोग इन यात्रा वृत्तों के बारे में जानेंगे। शोध प्रबन्ध के लिये आपको शुभकामनाएँ, आपकी मेहनत रंग ले आयी है। आपको उम्मीद से ज्यादा सफ़लता हाथ लगे।
ReplyDeleteअब रही मेरी बात............मुझे रोमांचक यात्रा करने में ज्यादा मजा आता है, आसान लगने वाला सफ़र "यात्रा" नहीं कहलाती है पर्यटन बन जाती है इसलिये मैं अपने साथ मुश्किल से किसी एक-दो को ही ले जाता हूँ, क्योंकि जिस तरह की खतरनाक लगने वाली यात्रा मैं करता हूँ उसके बारे में लाखों में से कोई एक-आध (सनकी) इंसान सोचता होगा। मैं घूमने के मामले में एकदम सिरफ़िरा हूँ। मुझे घूमने के चक्कर में खाने-पीने की भी चिंता नहीं होती है, ना थकावट ना कोई परेशानी, जहाँ भी घूमने जाता हूँ, पूरी जायज कंजूसी दिखाता हूँ। मेरा साल में एक-दो बार तो घूमना होता नहीं है। कब कितने दिन बाद मेरी खोपडी कही बाहर घूमने के लिये तडफ़ उठे मैं खुद नहीं जानता? मैं चाय, से लेकर रिश्वत तक से सख्त नफ़रत करता हूँ। "सिर्फ़ और सिर्फ़ घूमना" गुरु नानक जी की तरह मेरे जीवन का मूल मन्त्र है। अपनी अभी तक की छ्त्तीस वर्ष की उम्र में से अठारह वर्ष भारत भर में भ्रमण करने में लगाये है, जिसमें कुल सौ से ज्यादा स्थलों पर मैं स्वयं जा कर अवलोकन कर चुका हूँ। ब्लॉग एक ऐसा साधन है जिसके द्धारा हम अपनी बात सबको अपने सरल शब्दों से बता देता देते है। मैं आशा करता हूँ कि मेरे व अन्य साथियों के यात्रा वृतांत देख और लोग भी इस नेक कार्य को आगे बढाये, ताकि आने वाली पीढियाँ भी जाने कि हमारे पूर्वज कैसे सिरफ़िरे रहे थे। मैंने ज्यादातर यात्रा बाइक से की है क्योंकि रेल व बस में यात्रा करने से यात्रा का आनन्द नहीं रह जाता है, निकट भविष्य में बाइक से संम्पूर्ण भारत भ्रमण करने के लिये मैं जाना चाह रहा हूँ जिसमें लगभग चालीस दिन लगेंगे। दुनिया में काफ़ी लोग ऐसे मिल जाते है जिन पर हमें विश्वास ही नहीं होता है कि ये वास्तव में इतना भ्रमण कर चुके है। लेकिन वे ब्लॉग या अन्य किसी साधन पर भी अपने विचार नहीं लिखते है, जो कि सबके साथ अन्याय है।
प्रशंसनीय प्रयास।
ReplyDeleteSunder Prayas....
ReplyDeleteबहुत अच्छा प्रयास बधाई आपको,
ReplyDeleteहिन्दी में यात्रा वृत्तांतों की कमी खलती है, परंतु ब्लॉगों ने इस कमी को पूरा करने की कोशिश की है, ब्लॉगों में यात्रा वृत्तांत केवल वृत्तांत नहीं होते बल्कि अगर किसी को यात्रा करनी हो तो उसके लिये सहायक भी होते हैं।
आपका ब्लॉग और आपकी approach में नयापन देखकर अच्छा लगा.
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा कि आपने यायावरी को चुना...और यहाँ पर ब्लॉग में उप्लाभ्द यात्रावृतांत का वर्णन किया.. सादर
ReplyDeleteजानकारी भरा पोस्ट|
ReplyDeleteबहुत अच्छी तरह से लिखा है|
सादर
ब्लॉग के लेखन को शोध का विषय बनाने से ब्लॉग लेखन में और उर्जा आएगी. सुंदर प्रयास अवश्य एक नए सिरे से ब्लॉग लेखन के लिये प्रोत्साहित करेगा.
ReplyDeleteशुभकामनायें.
ईमानदारी से किया गया एक अच्छा प्रयास आपके लेखन में चार चाँद लगा देता है | इस पोस्ट पर दिखाई दे रहा कि आपके द्वारा किया गया प्रयास कितना सार्थक है |
ReplyDeleteब्लॉग पर यात्रा वृतांत लिखना सरल और झंझटो से मुक्त है. आज के लेखन की ये सबसे सशक्त विधा है .घर बैठे आप छप गए और पढ़ लिए गए. जो लेखक मन से फक्कड़ घुमक्कड़ होता है उसका लेखन भी बिंदास होता है. बोझिल शास्त्रीयतासे बंध कर लिखना यायावरी प्रवृति वाले लोगो के लिए कष्टकर होता है .ब्लॉग पर लिखे सारे यात्रा लेखन को अगर समेट लिया जाय तो बहुत बड़ा काम हो जायेगा लेखन में स्थानीय संस्कृति तीज त्यौहार इतिहास एवं श्रुति इतिहास का समायोजन अवश्य करना चाहिए...शालिनी जी! ब्लॉग पर लिखे यात्रा-वृत्तों को शोध में शामिल करने का आपका यह शायद दुनिया का प्रथम प्रयास है जिससे भविष्य में भी न केवल शोध की दिशा को नया आयाम मिलेगा अपितु ब्लॉग-लेखन में भी गुणवत्ता आयेगी। बहुत-बहुत साधुवाद!!!
ReplyDeleteबहुत अच्छा प्रयास। सरल, सुबोध शैली में आपने बहुत अच्छा काम किया है।
ReplyDeleteमैंने यात्रावृत्तांत पर एक आलेख ‘राजभाषा हिन्दी’ ब्लॉग पर लिखा और कुछ मित्रों के यात्रावृत्तांत का संदर्भ देकर आग्रह किया था कि लोग अपने-अपने यात्रावृत्तांत को मेल करें। लोगों ने न मेल किया न मैंने कोई खोजी काम किया। आपने खोजी काम कर बहुत ही उपयोगी सामग्री जुटाई है। शिखा जी ने कुछ और दिशा निर्देश दिए हैं। इससे आपके शोध को नया आयाम मिलेगा।
मैंने ‘मनोज’ ब्लॉग पर गंगासागर, नालंदा, राजगीर, पटना, मसूरी, ऊटी आदि पर यात्रावृत्तांत लिखने की कोशिश की है। देखिएगा, यदि सार्थक लगे तो।
अच्छा प्रयास है!
ReplyDeleteवाह! आपका प्रयास अनुपम और सराहनीय है.
ReplyDeleteबहुत अच्छे से चिठ्ठाकारों का परिचय करवाया है आपने.
सुखद अनुभूति हुई.
मेरे ब्लॉग पर आप आयीं,इसके लिए बहुत बहुत आभार आपका.
शालिनी जी आपका कार्य अद्भुत और सराहनीय है |एक शिकायत भी है आपके दो ब्लॉग अभी पोस्ट विहीन हैं |कृपया उन्हें भी अपनी मनोरम लेखनी का स्पर्श दें |शुभकामनाएं |
ReplyDeleteबहुत अच्छा प्रयास बधाई आपको...शालिनी जी
ReplyDeleteसंजय भास्कर
आदत....मुस्कुराने की
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
आपके इस सुंदर प्रयास की सफलता के लिए शुभकामनाएं।
ReplyDeleteबहुत अच्छा लेख!
ReplyDeleteशालिनी जी , आपका यात्रा - साहित्य उन्नयन का यह परिश्रमपूर्ण सत्प्रयास अत्यंत सराहनीय है |
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनाएँ स्वीकारें ...
बढ़िया व सराहनीय
ReplyDeleteGyan Darpan
कमाल का कार्य कर रही हैं आप ....
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनायें स्वीकार करें !
आपका यह शोध कार्य बेहद सराहनीय और एक महत्वपूर्ण कदम है.
ReplyDeleteसमीर जी का धन्यवाद कि उन्होंने मेरे यात्रा वृत्तांतों को इतने दिनों बाद भी याद रखा। इसके आलावा ब्लॉग पर यात्रा लेखन नियमित करने वालों में विनीता यशश्वी, अन्नपूर्णा जी और सुब्रमनियन जी का प्रयास उल्लेखनीय है। आशा है इस शोध से हिंदी में यात्रा वृत लिखने की प्रवृति के बारे में नई जानकारी मिलेगी।
ReplyDeletehindi bhasha aur shaity , apke blog ke anusandhan ka nirnay behad sarahneey hai .apne meri rachna padhi iske liye sprem aabhar .
ReplyDeleteशालिनी जी ,आपका यह शोध कार्य बेहद सराहनीय!
ReplyDeletebehtareen blog aur usse judi baaten
ReplyDeleteapke blog pr mili mahtvpoorn jankari ....sadar abhar.
ReplyDeleteसुन्दर और सार्थक प्रस्तुति.
ReplyDeleteआपकैा आभार।
ReplyDeleteहम तो कहीं भी नहीं ठहरते इस ब्लॉग यात्रा में।
फिर बेकार ही रोज-रोज मेहनत कर रहा हूँ।
बहुत बढ़िया लेख......आभार
ReplyDeleteआपने जिन हिंदी ब्लोगरो को शामिल किया .....वो वाकई में कमाल के है और अनवरत अच्छा लिख .... इन्ही की प्रेरणा स्वरूप मैंने भी यात्रा वृतांत लिखना शुरू किया था..... सफ़र है सुहाना नाम के ब्लॉग से | लिंक ये है
www.safarhainsuhan.blogspot.com
or
www.safahaisuhana.com
धन्यवाद
शालिनीजी सभी महत्वपूर्ण हिंदी ब्लोगों को एक जगह पिरोने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद्.
ReplyDeletewww.travelwithrd.com
Bahut sundar parichay.
ReplyDeleteYou may also like: Information about periwinkle flower & Ashoka tree facts
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 09 सितम्बर 2021 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
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