परिचय :
हिन्दी गद्य साहित्य की अनेक विधाओं में यात्रा-वृत्तान्त अपनी अनुभूतिमयता, प्रकृति-पर्यवेक्षण, स्थान वैशिष्ट्य और हृदय की रागात्मक चेतना से ओत-प्रोत होने के कारण न केवल निबन्ध की तरह अपितु रामचन्द्र तिवारी के शब्दों में- ‘‘सामान्य वर्णनात्मक शैली के अतिरिक्त पत्र और रिपोतार्ज शैली में लिखे जाते हैं इसलिए इनमें निबन्ध तथा संस्मरण आदि कई ग्रन्थ-रूपों का आनन्द एक साथ मिलता है।’’1 अतएव यात्रा-वृत्तान्त पाठक को अद्यतन रमाये रखने के कारण आज एक लोकप्रिय विधा बन चुका है। भू-मण्डलीकरण और हवाई जहाज की यात्रा की सुलभता के कारण सुदूर और दुर्गम स्थानों पर जाना भी सुगम हो गया है। इसलिए यात्रा-भीरु भी अब यात्राओं से नही कतराते। अपनी यात्राओं के खट्टे-मीठे अनुभव बहुत से यात्री लिखते आ रहे हैं किन्तु उनके लेखन और साहित्य से गहरे जुड़े साहित्य-सर्जकों के यात्रा-वृत्तान्त में अन्तर है। कोई भी साहित्यकार जब यात्रा करता है तो उसकी यात्राओं का उदे्श्य सैलानी, राजनेता, पत्रकार और वैज्ञानिकों की यात्राओं से भिन्न होता है। वह अपने गन्तव्य के इतिहास के उन अनखुले और अधखुले पक्षों का भी उद्घाटन करता है तथा अपनी सूक्ष्म पर्यवेक्षण शक्ति से उसे एक प्रकार की ‘रचना’ या ‘सृजन’ का रूप और आकार प्रदान कर देता है जो सामान्य यात्रियों के अन्तर्बोध में कभी भी नहीं आ सकते हैं। यह रचनाकार यात्रियों की विशिष्ट दृष्टि का ही प्रतिफल हो सकता है। एक रचनाकार यात्री का वर्णन और विवरण उसकी अपनी अन्तरानुभूति का आधार पाकर पाठक को आन्तरिक और वाह्य दोनों रूपों में समृद्ध करता है इस प्रकार वह पाठक को वर्णित गन्तव्य तक मनसः पहुँचाने में भी समर्थ होता है। डॉ0 रामचन्द्र तिवारी के शब्दों में- ‘‘यात्रा-वृत्तान्तों में देश-विदेश के प्राकृतिक दृश्यों की रमणीयता, नर-नारी के विभिन्न जीवन सन्दर्भ, प्राचीन एवं नवीन सौन्दर्य-चेतना की प्रतीक कलावृत्तियों की भव्यता तथा मानवीय सभ्यता के विकास के देवदत्त अनेक वस्तु, चित्र, यायावर लेखक-मानस में रूपायित होकर वैयक्तिक रागात्मक उष्मा से दीप्त हो जाते हैं। लेखक अपनी विम्बविधायिनी कल्पना-शक्ति से उन्हें पुनः मूर्त करके पाठकों की जिज्ञासावृत्ति को तुष्ट कर देता है।’’2
मनुष्य का चाहे बचपना हो अथवा युवावस्था उसकी प्रवृत्ति सदैव से ही घुमक्कड़ी रही है। वह अपने वाल्यकाल से लेकर प्रौढ़ावस्था तक कहीं न कहीं भ्रमण करने की चेष्टा किया करता है। इस भ्रमण में जो भी पात्र और विचार सम्पर्क में आते हैं वह उसक मानस-पटल पर अंकित हो जाते हैं। जब वह उन विचारों को लिपिबद्ध करता है तब वहीं से यात्रा-साहित्य का जन्म होता है। यात्रा-साहित्य-सृजन के मूल में सर्जनकर्ता की प्रकृति के प्रति प्रेम और उसके दार्शनिक विचार महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यात्रा-वृत्त लिखने वाले लेखक को वहां के नगर, मुहल्लों, रीति-रिवाजों, धार्मिक प्रवृत्तियों एवं उसकी ऐतिहासिकता का भी वर्णन पूर्ण दक्षता से करना होता है। इस प्रकार उस स्थान, जहां से यात्रा का सन्दर्भ जुड़ता है का चित्र पूर्ण रूपेण पाठक के मानस पटल पर उकेर देना सफल यात्रा-वृत्तान्त का परिचायक है। अतः यात्रा-वृत्तान्त का पाठक पूर्ण मनोयोग से उस स्थान के भौतिक, आध्यात्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, दार्शनिक, ऐतिहासिक, भौगोलिक आदि सम्पूर्ण पक्षों से विधिवत् तादात्म्य स्थापित कर लेता है। महादेवी वर्मा के अनुसार- ‘‘संगीत थम जाने पर गायक जैसे भैरो के वाद्य और अपने गीत के संगीत पर विचार करने लगता है वैसे ही यात्री अपनी यात्रा के संस्मरण दुहराता है। स्मृति के प्रकाश में अतीतकालीन यात्रा को सजीव कर देने का तत्त्व इस वर्णन को साहित्य का स्वरूप प्रदान करता है। पर्यटक के साथ पाठक भी अतीत में जी उठता है।’’3
सन्दर्भ-
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- डॉ0 तिवारी रामचन्द्र, हिन्दी का गद्य इतिहास, विश्वविद्यालय प्रकाशन, वाराणसी, 1992, पृ0-29
- वही, पृ0-296
- प्रजापति डॉ. जगदीश कुमार, हिन्दी साहित्य का इतिहास प्रवृयात्मक अध्ययन, प्रथम संस्करण भवदीय प्रकाशन, अयोध्या, फ़ैज़ाबाद, 2001, पृ0-468.
क्रमशः...
सुन्दर और उपयोगी आलेख...बहुत-बहुत धन्यवाद और बधाई
ReplyDeleteमानव जीवन में यात्रा के सर्वोपरि महत्त्व को प्रतिपादित करते हुए उर्दू का यह शे’र बहुत खास है,
ReplyDeleteसैर कर दुनिया की गाफिल ज़िन्दगानी फिर कहां।
ज़िन्दगानी-गर रही तो नौजवानी फिर कहां।
हिंदी साहित्य में यात्रा-वृत्तांत का विपुल भंडार नहीं है। यात्रा-वृत्तांत में अनुभव और रोमांच के साथ-साथ शैलीगत विशेषताओं की योग्यता भी रचनाकार को सफलता प्रदान करती है। इस विधा को साधना एक कठिन कार्य है।
आपका यह सारगर्भित आलेख बहुत ही ज्ञानवर्धक है।
स्मृति के प्रकाश में अतीतकालीन यात्रा को सजीव कर देने का तत्त्व इस वर्णन को साहित्य का स्वरूप प्रदान करता है। पर्यटक के साथ पाठक भी अतीत में जी उठता है।’
ReplyDeleteअति सुन्दर जानकारी प्रदान करती हुई आपकी प्रस्तुति के लिए आभार.
मुझे इस ओर सोचने के लिए आपके इस लेख से अच्छी प्रेरणा मिली.
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है.
atyant upyogi lekh!!
ReplyDeleteज्ञानवर्धक पोस्ट के लिए आभार
ReplyDeleteउपयोगी और ज्ञान बढाने वाली जानकारी
ReplyDeleteशुभकामनाएं
उत्कृष्ट ,सुन्दर और सार्थक ब्लागिंग के लिए आपको बधाई और ढेरों शुभकामनायें |
ReplyDeleteमहा-स्वयंवर रचनाओं का, सजा है चर्चा-मंच |
ReplyDeleteनेह-निमंत्रण प्रियवर आओ, कर लेखों को टंच ||
http://charchamanch.blogspot.com/
bahut sunder lekh padhne ko mila. aur yatra vrtant sambandhi bareek jankariyan bhi.
ReplyDeleteaabhar.
ऐसे लेख लिखने के लिये पहले जी तोड मेहनत करनी होती है।
ReplyDeleteयात्रा वृत्तांत मात्र एक कथ्य नहीं होता. होती है उसमे बांटने, सोचने, कहने और विचाने के लिए मुद्दे और तथ्य. संवेदी रचनाकार की लेखनी से वही अनुभूतियाँ जब फूट पड़ती है अपनी रंग में, अपने तेवर में, अपने सरस गद्यमयी / काव्यमयी सौन्दर्य में, फिर तो उसका आकर्षण, प्रवाह और प्रभाव देखते ही बनाता है. इसीलिए यात्रा वृत्तांत साहित्य की एक विधा बन गयी है. आभार इस रचना के लिए.
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ReplyDeletesundar aur gyanvardhak jaankari..prarmbh se lekar ant tak pathak ko bandhe raknhe me saksham lekh..koi badhiya sa yatra britant bhi padhne ka mauka pradan kariye..abhar ke sath
ReplyDeleteयात्रा साहित्य के विषय में अच्छी जानकारी मिली ..
ReplyDeleteअच्छी जानकारी
ReplyDeleteअच्छी जानकारी
ReplyDeleteयात्रा वृत्तांत ..पर बहुत ही ज्ञानवर्धक और सुन्दर लेख...
ReplyDeleteसुन्दर शब्दों के चयन,वाक्य विन्यास और भाषा-शैली ने बहुत रोचक बना दिया है ....
अच्छा लिखा है आपने भविष्य की यात्राओं मे द्रृष्टि और सोच कैसी होनी चाहिये इस पर प्रभाव डाला है आगे लाभान्वित होता रहूंगा ।
ReplyDeletev good
ReplyDeleteशोध परक सुन्दर गद्य रूप में बढ़िया प्रस्तुति .आभार आपका हम भी कुछ सीखेंगें इस साहित्यिक तेवर से .
ReplyDeleteएक सार्थक एवँ शोधपरक लेख। एक सार्थक एवँ शोधपरक लेख।
ReplyDeleteसुंदर और सार्थक आलेख...
ReplyDeleteसाहित्यिक यात्रा-वृत्तान्त पर विचार-पूर्ण लेख है। आभार।
ReplyDeleteBahut sundar lekh...saarthak jaankari ke saath..!
ReplyDeleteAabhaar!
bahut sundar ..... aapki bhavna ko naman .
ReplyDeleteमहादेवी वर्मा के अनुसार- ‘‘संगीत थम जाने पर गायक जैसे भैरो के वाद्य और अपने गीत के संगीत पर विचार करने लगता है वैसे ही यात्री अपनी यात्रा के संस्मरण दुहराता है। स्मृति के प्रकाश में अतीतकालीन यात्रा को सजीव कर देने का तत्त्व इस वर्णन को साहित्य का स्वरूप प्रदान करता है। पर्यटक के साथ पाठक भी अतीत में जी उठता है।बहुत सुन्दर प्रस्तुति .एक ख़ास प्रवृत्ति को मुखरित करती पोस्ट . tuesday, August 16, 2011
ReplyDeleteउठो नौजवानों सोने के दिन गए ......http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/
सोमवार, १५ अगस्त २०११
संविधान जिन्होनें पढ़ लिया है (दूसरी किश्त ).
http://veerubhai1947.blogspot.com/
मंगलवार, १६ अगस्त २०११
त्रि -मूर्ती से तीन सवाल .