Friday, January 14, 2011

कबीर की सामाजिक चेतना और वर्तमान में उनकी प्रासंगिकता


              कबीर मात्र भक्ति-काल के सहज तथा जमीनी भक्त कवि ही नहीं थे वरन् एक बड़े समाज-सुधारक भी थे। उन्होंने जाति-पाँति का विरोध कर एक समरस, आडम्बर हीन, सर्वतोभावेन सुखी और समुन्नत मानव-समाज का आदर्श दिया।
                कबीर ने पुराण-प्रतिपादित ब्रह्मणवादी वर्ण-व्यवस्था, जो कि सम्भव है अपने उत्सकाल में योग्यता और कर्म पर आधारित वर्ग-विभाजन रहा हो, परवर्ती कालों में घोर आडम्बर युक्त, वंश-परम्परा पर आधारित विकृत जाति-प्रथा का रूप धारण कर चुकी थी, का डटकर विरोध किया और एक ऐसे पाखण्ड तथा आडम्बर हीन समाज की स्थापना पर जोर दिया जिसमें सर्वजन बिना आत्महीनता का शिकार हुए अपनी और सामाजिक उन्नति कर सकें।
                उन प्रत्येक महानतम् प्राप्तियों तथा प्रतिमानों को, जो केवल जातिगत आधार पर उच्चवर्गियों की थाती समझी जाती थीं और जिनका अनुचित तथा सर्वाधिक लाभ उस विशेष वर्ग या जाति के आडम्बरी और अयोग्य ही उठा पा रहे थे, कबीर ने प्रत्येक वर्ग के कर्मनिष्ठ, योग्य और अधिकारी व्यक्तियों के लिए सुलभ बना दिया। यद्यपि दलित वर्गों के कतिपय अज्ञानी, धूर्त और आतातायी कबीर की भ्रामक व्याख्या करके उस आड़ में बड़बोलेपन से अमानुसिक एवं उच्छृंखलतापूर्ण अभद्र कृत्यों को कर रहे हैं, परन्तु कबीर की यह कतई मंशा नहीं रही है। वे एक समरस समाज की स्थापना के पक्षधर थे जिसमें बिना किसी ऊँच-नीच के, बिना जातिगत भेद-भाव के वे सारी वरीयताएं सर्वजन हेतु सुलभ हों जिसके लिए वे योग्य और अधिकारी हों। इस रूप में कबीर ने जाति या वर्ण-व्यवस्था की वंशानुगत अवधारणा का विरोध करके कर्माधारित आडम्बरहीन समाज-दर्शन का पुरजोर समर्थन किया जिसकी आज भी महती आवश्यकता है। यही कबीर की उपादेयता और प्रासंगिकता है।
 उपरोक्त के समर्थन में कबीरदास जी की निम्न रचनाएं द्रष्टव्य हैं:
  • ऊँचे कुल का जनमिया जे करनी ऊँच न होय। सुबरन कलस सुरा भरा साधू निन्दत सोय।। 
  • हमारे कैसे लोहू तुम्हारे कैसे दूद। तुम कैसे बांभन पाण्डे हम कैसे सूद।। 
  • जो तम बांभन बंभनी जाया। आन बाट ह्वे क्यों नहिं आया।। 
  • जो तम तुरक तुरकिनी जाया। भीतर ख़तना क्यों न कराया।।
पाखण्ड और आडम्बर पर प्रहार हेतु कबीर के ये दो दोहे ही पर्याप्त हैः-
  • पाथर पूजे हरि मिलै तो मैं पूजूँ पहाड़..... 
  • दुनिया ऐसी बावरी पाथर पूजन जाय.....
                                                                              -शालिनी पाण्डेय

7 comments:

  1. Kabir ki samajik chetana par ek chhatron ke liye upyogi lekh. aabhar evn Badhaee.

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  2. Kabir ke samaaj-drishti ka Achha vishleshan. Badhai.

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  3. kabir ke baare mein aaur bhi jaankari aap apne lekh se dene ka kast karein... bahut hi periskrit bhasha me likha gaya aapka yah article wakai mein prashansha ke yogya hai.

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  4. kabir ke baare mein apne lekh ke madhyam se aur jankari uplabdh karane ka kasta karein... bahut hi pariskrit bhasa mein apka utkrist prayas sarahniya hai

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